राजस्थान की प्रमुख जनजातियां

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जनजाति

ऐसी जाति जो संविधान में उल्लेखित कुछ विशेष जातियों के समूह जो आदिमानव के वंशज है और आज भी आधुनिक सभ्यता से लगभग दूर है तथा जो जंगलों व पहाड़ों पर निवास करते हैं एवं जो शिक्षा सभ्यता आदि में समीपवर्ती स्थानों के लोगों से कुछ पिछड़े हुए हैं जनजाति के अंतर्गत आते हैं इन्हें सामान्यतः आदिवासी भी कहा जाता है|

राजस्थान में जनजातियां

राजस्थान में कुल 12 प्रकार की जनजाति पाई जाती है जो निम्न प्रकार से है-

भील, मीणा, गरासिया, सहरिया, कथोड़ी, डामोर आदि मुख्य हैं

राजस्थान की भील जनजाति

भील जनजाति राजस्थान की सबसे प्राचीन जनजाति है जो दक्षिणी राजस्थान के बांसवाड़ा, डूंगरपुर, उदयपुर, एवं चित्तौड़गढ़ जिले के प्रतापगढ़ तहसील में इनका बाहुल्य है शिकार वनोपज का विक्रय तथा कृषि इनकी आजीविका के मुख्य साधन है|

भीलो के घर टापरा कहलाते हैं|

वेशभूषा भील पुरुष सिर पर लाल किला अथवा केसरिया एटा फेटा साफा बदन पर अंग रखी कमीज या कुर्ता तथा घुटनों तक ढेपाड़ा धोती बांधते हैं|

भील महिलाएं महिलाएं लूगड़ा कांचली कब्जा घाघरा अथवा पेटिकोट पहनती है|

सामान्यतः भीलो में बाल विवाह प्रचलन नहीं है|

विधवा विवाह प्रचलन में है लेकिन छोटे भाई की विधवा को बड़ा भाई अपनी पत्नी नहीं बना सकता|

मीणा जनजाति

मीणा जनजाति राजस्थान की सबसे बड़ी संख्या में निवास करने वाली जनजाति है मीणा जनजाति के लोग मुख्यतः उदयपुर जयपुर प्रतापगढ़ सवाई माधोपुर अलवर सीकर व चित्तौड़गढ़ जिलों में निवास करते हैं|

मीणा जाति के लोगों की आजीविका का प्रमुख साधन कृषि एवं पशुपालन है|

राज्य की प्राय सभी जनजातियों में केवल मीणा जनजाति के लोगों ने ही अपने जातीय स्वरूप को भेदकर बाहर आने एवं विकास करने में पहल की है जनजातियों में यह जाति सर्वाधिक संपन्न एवं शिक्षित है

सहरिया जनजाति

सहरिया जनजाति एक वनवासी जनजाति है यह समुदाय शैक्षिक आर्थिक वह सामाजिक दृष्टि से बहुत पिछड़ा हुआ है अधिक पिछड़ा होने के कारण भारत सरकार ने केवल इसी जनजाति को आदिम जनजाति की सूची में रखा है सहरिया लोगों की बस्ती को सहराना  के नाम से पुकारा जाता है सहराना के बीच में एक छतरी नुमा गोल या चौकोर झोपडी या ढालिया बनाया जाता है जिससे हथाई या बंगला कहते हैं यह इनकी सामुदायिक में संपत्ति होती है

सहरिया जनजाति की विशेषताएं

यह जनजाति शिकार पर निर्भर है इनके घरों को टापरी कहते हैं यह लोग जंगली फलों व वनोंपजों  का संग्रहण करके काम में लेते हैं या उन्हें अनाज के बदले बेच देते हैं यह अनाज वह सामान को सुरक्षित रखने के लिए मिट्टी व गोबर की कोठी बनाते हैं छोटी कोठी को कुंजीला तथा आटा रखने की कोठी को भड़ेरी कहा जाता है

वेशभूषा

पुरुष वर्ग वर्ग अंगरखी (सलुका) का घुटनों तक ऊंची धोती, कुर्ता, कमीज, साफा पहनते हैं विवाहित महिलाएं एक विशेष प्रकार का वस्त्र ‘रेज’ पहनती है सहरिया स्त्रियां गोदना गुदवाने की बड़ी शौकीन होती है लेकिन पुरुषों वर्ग में यह वर्जित है|

सीताबाड़ी में स्थित वाल्मीकि आश्रम और वाल्मीकि मंदिर सहरियों का सबसे बड़ा तीर्थ स्थल है यह लोग हैं वाल्मीकि को अपना गुरु मानते हैं

सहरिया परिवार की कुलदेवी कोडिया देवी है तेजाजी वह भैरव इनके प्रिय लोक देवता है जिन का चबूतरा लगभग प्रत्येक के सहराने के बाहर देखने को मिलता है|

गरासिया जनजाति

कर्नल जेम्स टॉड ने गरासियों की उत्पत्ति ‘गवास’ शब्द से माने है जिसका अभिप्राय सर्वेंट होता है गरासियों के घर ‘ घेर’ कहलाते हैं यह लोग रंग बिरंगे वह चटकीले वस्त्र पहनने के बहुत शौकीन होते हैं सौंदर्य वृद्धि के लिए गोदन गुदवाने की प्रथा है
बांसुरी नगाड़ा अलगोजा, गरासियों के प्रिय वाद्य है

लूर, घूमर, वालर,

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